एक शिक्षक का धर्म

मैं सिखाता हूँ सिर्फ़ किताबें नहीं, मैं सिखाता हूँ सपनों की ऊँचाई।

एक शिक्षक का धर्म

मैं शिक्षक हूँ… एक अध्यापक।

ना मंच पर कोई सितारा,

ना अख़बारों की सुर्ख़ी,

मैं बस वो दीया हूँ,

जो हर सुबह बच्चों के लिए जलता है— चुपचाप।


मैं सिखाता हूँ सिर्फ़ किताबें नहीं,

मैं सिखाता हूँ सपनों की ऊँचाई।

कभी गणित के सूत्रों में,

तो कभी ज़िंदगी के मूल्यों में।


कभी डांटता हूँ…

तो सिर्फ़ इसलिए कि वो गलती दोहराएँ नहीं।

कभी मुस्कराता हूँ…

तो इसलिए कि उनमें हौसला ज़िंदा रहे।


मेरे हाथों में चॉक है,

पर हथियार नहीं…

शब्द हैं,

जो आत्मा को आकार देते हैं।


मैंने कई सपने अपनी आँखों से निकलकर

उनकी आँखों में जाते देखे हैं…

और वही है मेरा पुरस्कार।


मैं नायक नहीं,

पर हज़ारों नायकों को गढ़ता हूँ।

मैं न भाग्य बदल सकता हूँ,

पर दिशा ज़रूर दे सकता हूँ।


मैं शिक्षक हूँ – एक अध्यापक।

मैं जलता हूँ,

पर बुझता नहीं।

क्योंकि मेरे जलने से

किसी और का भविष्य रोशन होता है।


Written by: दिवेश सिंह रघुवंशी
Published at: Mon, Jun 9, 2025 10:39 AM
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