यज्ञ
make change to change

ऋषि वल्क के चेहरे पर एक अलग प्रकार की उदासीनता दिख रही है, ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था। सामान्य कद काठी , मुड़े हुए सिर पर सुशोभित ब्रह्मांडीय शिखा , ललाट पर चिन्हित त्रिपुण्ड तिलक , कपास से बने श्वेत धोती को कमर और अपने वक्षस्थल पर भारतीय रेशम से बने जनेऊ को धारण किए हुए थे। उनकी अस्त-व्यस्त घनी सफेद दाढ़ी और चमकदार ललाट एक दूसरे का अंतर्विरोध कर रहे थे ।
शायद ऋषि जी को त्रिपुण्ड के भविष्य की चिन्ता सता रही है , सुमंत मन ही मन विचार करने लगा।
हो भी क्यों न , कहीं न कहीं आतातातियों द्वारा षड्यंत्र जो रचा जा रहा था।
सुमंत ने महर्षि के सम्मान में अपना सिर झुकाया।
सम्राट कहां हैं?, महर्षि ने सुमंत से कहा । मुझे उनके पास ले चलो।
सुमंत कुछ कह पाता उससे पहले ही उसकी नजर ऋषि के हाथों में पड़ी । ताम्र पत्र की कई पांडुलिपियां जो पीपल की छाल से बने एक पवित्र धागे से बधी हैं।
जी महात्मा , सुमंत ने कहा। आइए.......
महर्षि सुमंत के साथ राजमहल के आम सभा के कक्ष की ओर चल पड़े।
महर्षि अपने अंदर चल रहे उस भीषण द्वंद को अब रोकना नहीं चाहते थे, वो उसे बिना एक भी क्षण गवाएं शब्द देना चाह रहे थे परंतु कक्ष अभी दूर था। अब सुमंत महर्षि के ललाट पर पड़ रहे उन लकीरों को स्पष्ट रूप से देख पा रहा था जो उनके अति व्याकुलता को प्रदर्शित कर रही थी। सुमंत समझ गया कि बात गंभीरता की पराकाष्ठा है, नहीं तो योग से अपने चित्त को नियंत्रित करने वाले योगी इतने अधिक व्यग्र नहीं होते।
उसने गति बढ़ा दी।