रेखाएं

how humen nature adopt from atmosphere

रेखाएं

गांवों में फैली हुई एक सिसकी,

आकर सरहद पर कुछ ऐसे ठिठकी,

रोक दिया हो जीवन रेखा, जैसे बादल में पानी अटकी।

दूर कहीं उस खेत में,

सरसों की फसल सयार लगी,

फिर कैसी ये बाधा रोके, चमगादड़ सी उल्टी लटकी।

कहूँ कि क्या वह भी चंचल सी,

तितली के पीछे उड़ सी रही,

पीले रंग का मौसम ये, दूर कहीं कोयल भटकी।

सिंह दहाड़ भी कोमल लगता,

और कोमल सी चली बयार,

ओस की बूँदें दूब को छेड़े, कान्हा छेड़े जैसे मटकी।

हुआ सूर्य उत्तरायण जब,

बेजान शिला भी तन सा गया,

रूष्ठ मास अब खुल सा गया,

मन में कुछ भी अब ना खटकी।

रोक दिया हो जीवन रेखा, जैसे बादल में पानी अटकी ।।


Written by: satyendra
Published at: Sun, Apr 6, 2025 7:44 PM
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